000 01934nam a22001817a 4500
020 _a9789352211548
082 _a8H4
_bMEH/P
100 _a Mehta,Mahima
100 _aमेहता,महिमा
245 _a Parchhaiyan/
_cby Mahima Mehta
246 _a‘परछाइयाँ’
260 _aKolkata:
_bLokbharti Prakashan
_c2016.
300 _a303p.
500 _a‘परछाइयाँ’ आत्म-कथा नहीं, जीवन-गाथा है। इसमें जीवन के अनुभवों और निष्कर्षों को अनावृत्त किया गया है। इस पुस्तक की पंक्तियों में पाठक स्वयं अपने जीवन में घटित घटनाओं की अनुभूति करता चलता है। मनुष्य की मूल प्रवृत्तियों का सूक्ष्मता और सरलता से किया गया विश्लेषण श्रीमती महिमा मेहता के संवेदनशील मन को भी उजागर कर देता है। जीवन में संघर्ष क्या होता है और उससे जूझने के लिए सकारात्मक एवं आस्थावादी दृष्टि कैसी भूमिका निभाती है, इसका दिग्दर्शन कराती है ‘परछाइयाँ’। इन परछाइयों में जो चित्र उभरते चलते हैं उनको कुशल चितेरे की भाँति उकेरने में लेखिका अत्यन्त सफल रही है।
650 _aEssay
650 _aHindi Literature
942 _cBK
999 _c661886
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